कविता "चोरों के नहीं महल बनेंगे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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*कुछ ने पूरी पंक्ति उड़ाई**,*
*कुछ ने थीम चुराई मेरी।*
*मैं तो रोज नया लिखता हूँ*
*रोज बजाता हूँ रणभेरी।*
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*चोरों के नहीं महल बनेंगे**,*
*इ...
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